25 मई से सूर्य का रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश, शुरू होगा नौतपा: 9 दिनों तक तपेगी धरती, फिर होगी झमाझम बारिश!

उज्जैन लाइव, उज्जैन, श्रुति घुरैया:
25 मई को सुबह 9 बजकर 40 मिनट पर सूर्य का रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश एक विशेष खगोलीय और ज्योतिषीय घटना है, जो भारतीय पंचांग और मौसम चक्र दोनों को ही महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करती है। यह समय विशेष रूप से “नौतपा” के आरंभ का संकेत देता है — यानी वह नौ दिन जब सूर्य की किरणें पृथ्वी पर अत्यधिक तीव्रता से पड़ती हैं और वर्षा ऋतु के संकेत तैयार होने लगते हैं।
ज्योतिषाचार्य पंडित अमर डब्बावाला के अनुसार, जब सूर्य रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश करता है और यह गोचर वृषभ राशि में होता है, तो पृथ्वी के वातावरण में असामान्य गर्मी, उमस और फिर धीरे-धीरे बदलता मौसम देखा जाता है। इस बार भी 25 मई से आरंभ होकर लगभग 13 दिनों तक सूर्य का रोहिणी नक्षत्र में रहना तय है, जो सीधे तौर पर वर्षा ऋतु को प्रभावित करेगा।
रोहिणी नक्षत्र को चंद्रमा का अत्यंत प्रिय नक्षत्र माना गया है और सूर्य का इसमें प्रवेश होना आकाशीय ऊष्मा को अत्यधिक बढ़ा देता है। इस कारण नौतपा के दौरान पहले तीन दिन तीखी उमस, गरज-चमक और आंधी-तूफान की स्थिति बनती है। अगले तीन दिनों में तेज हवाओं के साथ हल्की वर्षा या बूंदाबांदी की संभावना रहती है, और अंत के तीन दिन प्रायः तेज बारिश का संकेत देते हैं। इस समय वातावरण में नमी बढ़ जाती है, और वर्षा ऋतु के बीज बोए जाते हैं।
ज्योतिषीय दृष्टि से यह बदलाव तब और अधिक प्रभावशाली होता है जब वृषभ राशि में सूर्य, चंद्र और बुध के साथ केंद्र त्रिकोण योग बना रहे हों। इस त्रिकोणीय संबंध को “मौसम समन्वयकारी योग” कहा जाता है, जो पृथ्वी के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग मौसम की स्थितियाँ उत्पन्न करता है।
इस समय नौतपा का प्रभाव खास तौर पर देश के उत्तर-पूर्वी राज्यों से शुरू होकर दक्षिण और पश्चिम दिशा की ओर बढ़ेगा। यही कारण है कि दक्षिण भारत के समुद्री तटीय क्षेत्र, जैसे केरल, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में वर्षा की शुरुआत उत्तर भारत से पहले होती है। इसके साथ ही पहाड़ी क्षेत्रों — जैसे उत्तराखंड, हिमाचल और पूर्वोत्तर राज्यों में भी अचानक बारिश और तापमान में गिरावट देखी जा सकती है।
सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी नौतपा का समय अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। ग्रामीण अंचलों में इसे खेतों की तैयारी और मौसम की गणना के लिए महत्वपूर्ण कालखंड माना जाता है। इसी समय किसान आकाश की स्थिति देखकर आने वाले मानसून का अनुमान लगाते हैं।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, सूर्य का रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश वर्षा के देवता इंद्र के आगमन का सूचक होता है। यही कारण है कि कई स्थानों पर इस समय विशेष यज्ञ, हवन और वर्षा की कामना हेतु प्रार्थनाएं की जाती हैं।